Questions raised on the unity of SAD! :
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शिअद की एकता पर उठे सवाल! 

Editorial

Questions raised on the unity of SAD!

Questions raised on the unity of SAD! : शिरोमणि अकाली दल की पूर्व नेता बीबी जगीर कौर (Bibi Jagir Kaur) के पार्टी से निष्कासन ने जहां आंतरिक कलह को उजागर किया है, वहीं हालिया विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद से पार्टी नेताओं का डांवाडोल हो चुका मनोबल भी जाहिर हो गया है। बीबी जगीर कौर शिअद राजनीति का अभिन्न अंग समझी जाती थीं, लेकिन शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान पद के चुनाव में बगैर पार्टी नेतृत्व की इच्छा के उतर कर उन्होंने बगावत का जो सुर अलापा वह अचंभित करने वाली घटना है। यह तब है, जबकि वे चार बार कमेटी की प्रधान रह चुकी हैं। आखिर ऐसी क्या वजह हो सकती है कि उन्होंने पार्टी नेतृत्व का कहना नहीं माना? इसे राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पराकाष्ठा कहा जा सकता है कि पार्टी संगठन की ओर से सफाई पेश करने के लिए अनुशासन कमेटी के तीन बार बुलावे पर भी वे पेश नहीं हुईं। पंजाब की राजनीति में शिअद की भूमिका कभी ओझल नहीं हो सकती, लेकिन मौजूदा हालात ऐसे बन गए हैं कि पार्टी बतौर विपक्ष सरकार के समक्ष कोई बड़ी चुनौती पेश करने के बजाय अपनों की बगावत से ही जूझ रही है।

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तीन कृषि कानूनों के खिलाफ केंद्र में भाजपा सरकार से अपना समर्थन वापस लेने और फिर पंजाब में अकेले विधानसभा चुनाव (Vidhansabha Election) लडऩे से शिअद को इसका अहसास हो गया है कि उसके लिए भाजपा का साथ कितना जरूरी था। पिछले दिनों शिअद के एक वरिष्ठ नेता की ओर से बयान आया था कि पार्टी फिर से भाजपा के साथ चल सकती है। इससे पहले विधानसभा चुनावों के दौरान भी हालात की गंभीरता को समझते हुए शिअद नेता यह कहते सुने गए थे कि परिणाम आने के बाद भाजपा के साथ गठजोड़ हो सकता है। हालांकि यह और बात है कि भाजपा की ओर से ऐसा कोई बयान नहीं आया। वहीं इस समय भी प्रदेश की भाजपा इकाई मूकदर्शक बनकर शिअद के घटनाक्रम को देख रही है। यह तब है, जब शिअद नेता बीबी जगीर कौर पर आरोप लगा रहे हैं कि वे भाजपा और कांग्रेस नेताओं के कहे पर काम कर रही हैं। शिअद ने तो उन्हें निष्कासित भी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को तोडऩे की साजिश रचने और पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए किया है। हालांकि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव में उतरने का बीबी जगीर कौर का फैसला स्व प्रेरित हो सकता है, लेकिन पार्टी विरोधी साजिश रचने के आरोपों का खुलासा शिअद की ओर से किया जाना चाहिए।
 

गौरतलब है कि इस संबंध में शिअद की अनुशासन समिति ने एक स्टिंग का वीडियो पेश किया है, जिसमें एक भाजपा नेता शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्यों के लिए पैसे का प्रबंध करने की बात कर रहे हैं। पार्टी ने इस स्टिंग वीडियो के बूते यह आरोप लगाया है कि भाजपा नेता कमेटी के प्रधान के चुनाव में हस्तक्षेप कर रहे हैं। इस स्टिंग की सच्चाई क्या है, यह तो जांच का विषय हो सकता है, लेकिन बीबी जगीर कौर का चुनाव लडऩा और ऐसे स्टिंग का होना संयोग हो सकता है। हालांकि यह तय है कि पंजाब में एसजीपीसी की सियासत अब किसी पार्टी विशेष तक सीमित नहीं रहने वाली है। बीबी जगीर कौर ने शिअद के प्रभुत्व को चुनौती दी है, वे 27 वर्ष पार्टी में रही हैं और इस दौरान महिला विंग की राष्ट्रीय प्रधान के अलावा शिअद सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहीं। निष्कासन के बाद उनकी शिअद नेतृत्व पर यह टिप्पणी गंभीर है कि जिन्हें पंजाब के लोगों ने निकाल दिया हो, वे उन्हें क्या निकालेंगे। वे यह भी आरोप लगा रही हैं कि प्रधान अपने नजदीकियों की बातों में आ गए हैं।
 

शिअद के अंदर जारी यह संग्राम पार्टी के भविष्य के लिए नुकसानदायक है। शिअद की लोकप्रियता का ग्राफ बेहद तेजी से नीचे गिरा है, इसका अनुमान लंबी से अपना आखिरी चुनाव लडऩे वाले सरदार प्रकाश सिंह बादल की हार से लगाया जा सकता है। प्रदेश की जनता चाहती है कि पार्टी अपने आप में परिवर्तन लेकर आए। पार्टी ने अपने संविधान में बदलाव किया लेकिन प्रधान का पद फिर से बादल परिवार के पास ही रह गया। यह ऐतिहासिक तथ्य है कि जिन पार्टियों को परिवार संचालित कर रहे हैं, वे ज्यादा समय तक नहीं चल पाती। बीबी जगीर कौर की नेतृत्व को चुनौती इसी परिप्रेक्ष्य में है। हालांकि अगर उसी पार्टी नेतृत्व ने उन्हें इतना सम्मान दिया तो क्या उसकी बेअदबी सही है। यह मसला सोच-विचार करके सुलझाया जा सकता था, लेकिन बीबी जगीर कौर ने तो उसका अवसर भी पार्टी को नहीं दिया। जाहिर है, जहां शिअद को अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं में विश्वास बहाली की आवश्यकता है वहीं खुद को नए सिरे से खड़ा करके राज्य की जनता के सम्मुख मजबूत विपक्ष के रूप में स्थापित होने की भी है।